वांछित मन्त्र चुनें

अन्वेको॑ वदति॒ यद्ददा॑ति॒ तद्रू॒पा मि॒नन्तद॑पा॒ एक॑ ईयते। विश्वा॒ एक॑स्य वि॒नुद॑स्तितिक्षते॒ यस्ताकृ॑णोः प्रथ॒मं सास्यु॒क्थ्यः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

anv eko vadati yad dadāti tad rūpā minan tadapā eka īyate | viśvā ekasya vinudas titikṣate yas tākṛṇoḥ prathamaṁ sāsy ukthyaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अनु॑। एकः॑। व॒द॒ति॒। यत्। ददा॑ति। तत्। रू॒पा। मि॒नन्। तत्ऽअ॑पाः। एकः॑। ई॒य॒ते॒। विश्वाः॑। एक॑स्य। वि॒ऽनुदः॑। ति॒ति॒क्ष॒ते॒। यः। ता। अकृ॑णोः। प्र॒थ॒मम्। सः। अ॒सि॒। उ॒क्थ्यः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:13» मन्त्र:3 | अष्टक:2» अध्याय:6» वर्ग:10» मन्त्र:3 | मण्डल:2» अनुवाक:2» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर ईश्वर विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! (एकः) एकाकी आप (विश्वाः) समस्त विद्याओं के (यत्) जिन (अनुवदति) अनुवादों को करते हैं (तत्) वह साथ (रूपा) नाना प्रकार के रूपों को (मिनत्) छिन्न-भिन्न करते और (तदपाः) वही कर्म जिनका ऐसे होते हुए आप (एकः) एकाकी (ईयते) प्राप्त होते (तितिक्षते) सबका सहन करते (यः) जो (ता) उन उक्त कर्मों का (प्रथमम्) विस्तार जैसे हो वैसे (अकृणोः) करते हैं जिन (विनुदः) प्रेरणा करनेवाले (एकस्य) एक आपका यह जगत् है (सः) वह आप (उक्थ्यः) कथनीय जनों में प्रसिद्ध (असि) हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो अद्वितीय जगदीश्वर हम लोगों के कल्याण के लिये सृष्टि की आदि में वेदों का उपदेश करता, संसार की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय करता है, जो अन्तर्यामी अपारशक्ति सब अपवादों को सहता है, उसी सर्वोत्तम प्रशंसा योग्य की आप लोग प्रशंसा करें ॥३॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरीश्वरविषयमाह।

अन्वय:

हे जगदीश्वर भवानेको विश्वा विद्या यदनुवदति तत्सहरूपा मिनन् तदपाः सन्नेक ईयते तितिक्षते यस्ता प्रथममकृणोर्यस्य विनुद एकस्येदं जगदस्ति स त्वमुक्थ्योऽसि ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अनु) (एकः) असहायः (वदति) (यत्) यानि (ददाति) (तत्) तानि (रूपा) रूपाणि (मिनन्) हिंसन् (तदपाः) तदपः कर्म यस्य सः (एकः) असहायः (ईयते) प्राप्नोति (विश्वाः) अखिलाः (एकस्यः) (विनुदः) विविधतया प्रेरकस्य (तितिक्षते) सहते। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (यः) (ता) तानि (अकृणोः) करोति (प्रथमम्) विस्तीर्णम् (सः) (असि) (उक्थ्यः) ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या योऽद्वितीयो जगदीश्वरोऽस्मत्कल्याणाय सृष्ट्यादौ वेदानुपदिशति जगत्सृष्टिस्थितिप्रलयान् करोति योऽन्तर्य्याम्यपारशक्तिः सर्वानपवादान् सहते तमेव सर्वोत्तमप्रशंसार्थं भगवन्तमुपासीरन् ॥३॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जो अद्वितीय जगदीश्वर आमच्या कल्याणासाठी सृष्टीच्या आरंभी वेदाचा उपदेश करतो. जगाची उत्पत्ती, स्थिती, प्रलय करतो. ज्याच्या अन्तर्यामी अपार शक्ती असून जो सर्व अपवाद (निंदा) सहन करतो. त्याच सर्वोत्तम प्रशंसायोग्य परमेश्वराची तुम्ही प्रशंसा करा. ॥ ३ ॥